नालंदा :- बिहार के लोकपर्व छठ को यूनेस्को की सूची में शामिल करने की कवायद शुरू कर दी गई है। बिहार संग्रहालय की ओर से इसकी तैयारी की जा रही है।बिहार संग्रहालय के निदेशक अंजनी कुमार सिंह ने बताया कि छठ महापर्व एक प्राचीन और महत्वपूर्ण पर्व है। यह बिहार के साथ-साथ अन्य राज्यों में भी मनाया जाता है। हम चाहते हैं कि इस पर्व को यूनेस्को की सूची में शामिल किया जाए। सिंह ने कहा कि यूनेस्को दो तरह की सूची जारी करता है। एक है वर्ल्ड हेरिटेज साइट, जो भौतिक संरचनाओं को दिया जाता है। दूसरी है इंटेंजिबल कल्चरल हेरिटेज, जो अमूर्त संस्कृति को दिया जाता है। छठ महापर्व एक अमूर्त संस्कृति है, इसलिए इसे इंटेंजिबल कल्चरल हेरिटेज के रूप में शामिल किया जा सकता है। सिंह ने बताया कि छठ महापर्व का डॉक्यूमेंटेशन किया जा रहा है। इसमें इस पर्व की शुरुआत, परंपरा, अनुष्ठान, विस्तार और बदलाव आदि शामिल होंगे। यह डॉक्यूमेंटेशन यूनेस्को को सौंपा जाएगा। उन्होंने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि यूनेस्को छठ महापर्व को अपनी सूची में शामिल करेगा। इससे छठ महापर्व की गरिमा बढ़ेगी और इसे विश्व भर में पहचान मिलेगी। किस तरह से छठ बाकी पर्वों से अलग है: छठ प्रकृति की पूजा का पर्व है। इसमें सूर्य की उपासना की जाती है। सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, 36 घंटों का उपवास किया जाता है, महिलाएं ही नहीं, बल्कि पुरुष भी छठ करते हैं,
छठ में नए अनाज, फल आदि सूप पर रखकर आस्था के साथ सूर्य को इस उम्मीद के साथ अर्पित करते हैं कि उनकी कृपा बरकरार रहे, हम उगते हुए सूर्य की तो पूजा करते ही हैं, साथ ही डूबते सूर्य की भी पूजा करते हैं,
इसमें शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है, छठ में किसी पंडित की जरूरत नहीं पड़ती है,
समाज के उस तबके को यह पर्व सम्मान देता है जिसे काफी समय तक अछूत मानकर बहिष्कार किया जाता रहा। जैसे कि डोम के बनाए सूप का इसमें बड़ा मोल है। सूप का ऐसा इस्तेमाल अन्य किसी पर्व में नहीं दिखता,छठ में फिल्मी गाने नहीं बजते बल्कि लोकगीत बजते हैं। अंगिका, भोजपुरी, मैथिली के लोकगीत होते हैं,भीख मांग कर पर्व करने की भी परंपरा है।