नालंदा :- गिरियक प्रखंड के घोषरावां गांव में स्थित मां आशापुरी मंदिर में शारदीय नवरात्रि के दौरान गर्भगृह में प्रवेश पर पाबंदी है। यह परंपरा 300 वर्ष से चली आ रही है। मंदिर में तांत्रिक विधि से पूजा होती है। इसलिए गर्भगृह में केवल पुजारी ही जा सकते हैं। पुजारी जनार्दन पांडे के मुताबिक, नवरात्रि पर मां आशापुरी मंदिर में तांत्रिक विधि से पूजा होती है। इसलिए गर्भगृह में जाने पर महिला और पुरुष दोनों को रोक रहती है। मंदिर के मुख्य तीन पुजारी हैं जो व्रत रखते हैं। उन्हें ही गर्भ गृह में जाने की अनुमति होती है। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि मां आशापुरी का यह मंदिर काफी पुराना है। इस मंदिर की स्थापना मगध साम्राज्य के पाल काल में हुई है। यहां मां दुर्गा की अष्टभुजी प्रतिमा स्थापित है। मां के नौ रूपों में से एक सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा होती है। इस मंदिर में सबसे पहले राजा जयपाल ने पूजा की थी। मंदिर के बनने के पीछे की कहानी है कि यहां एक ठिलहा हुआ करता था। जिस पर मां आशापुरी विराजमान थीं। उसी जगह पर आज मां आशापुरी का मंदिर बना हुआ है। प्रत्येक मंगलवार को श्रद्धालुओं की भीड़ यहां उमड़ती है। श्रद्धालु अपनी-अपनी मनोकामनाओं को लेकर मां आशापुरी के मंदिर में पहुंचते हैं। संतान प्राप्ति को लेकर श्रद्धालु मां भगवती की पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं और उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। इसके उपरांत यहां बली भी दी जाती है। मां को भोग के रूप में नारियल और बताशा चढ़ाया जाता है। शारदीय नवरात्रि को लेकर तैयारियां जोर-शोर से चल रही है। रंगरोगन के साथ रंग बिरंगी लाइटों से मंदिर को सजाया संवारा जा रहा है।
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