नालंदा। 9 नवंबर 1972 को पटना से काटकर नालंदा को जिला बनाया गया था। गुरुवार को अपना जिला नालंदा 51 साल का हो गया। जिला सृजन दिवस को लेकर जिला प्रशासन द्वारा कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। स्कूलों व महाविद्यालयों में रंगोली, मेहंदी, क्विज, चित्रकला, सजावट, वाद-विवाद व खेल प्रतियोगिताओं के अलावा पौधरोपण, गौतम बुद्ध व महावीर के जीवन दर्शन पर चर्चा, योग, कुश्ती कला, संगीत नाटक का आयोजन किया गया साथ ही सरकारी भवनों को रौशनी से सजाया गया। बीते वर्षों में जिले ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। यहां विकास की लंबी लकीरें खिंची गयी हैं। वहीं दूसरी ओर, अब भी कुछ सपने साकार होने शेष हैं।पर्यटन व शिक्षा के क्षेत्रों में जिले में कई बड़े काम हुए हैं। सड़कों का जाल तो बिछा है। विकास के पैमाने पर देखा जाए तो सबसे अनोखी पहल गंगाजल की धार का जिले में बहना है। 50 साल का होने पर सीएम नीतीश कुमार ने जिलेवासियों को यह बड़ी सौगात दी थी। स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी काफी तरक्की हुई है। मेडिकल कॉलेज, डेंटल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, पॉलिटेक्निक कॉलेज, नालंदा यूनिर्वसिटी ऑफ नालंदा की स्थापना की गयी है। फिर से यहां देश-विदेश के छात्र पढ़ने के लिए आने लगे हैं। 38 साल बाद नालंदा खुला विश्वविद्यालय यहां आया। पर्यटन के क्षेत्र में राजगीर, पावापुरी व नालंदा का काफी विकास हुआ है। राजगीर स्काईवॉक, नेचर सफारी, जू- सफारी से लेकर घोड़ाकटोरा को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है। राजगीर में सीआरपीएफ कैम्प व पुलिस ट्रेनिंग सेंटर खोला गया है। राजगीर में आयुध कारखाना तो हरनौत में रेल कोच फैक्ट्री खोली गयी है। क्रिकेट स्टेडियम, फिल्म सिटी व आईटी सिटी समेत कई और बड़े प्रोजेक्ट्स का कार्य अंतिम चरण में है। इन सभी उपलब्धियों के बावजूद जिले में कुछ चुनौतियां भी हैं। कृषि आधारित जिला होने के बाद भी कृषि उत्पादकों के अनुपात में एक भी कृषि व्यावसायिक यूनिट नहीं स्थापित हो पायी। आलू से चिप्स तैयार करने का सपना अब भी अधूरा है। इसी प्रकार, यहां बड़े पैमाने पर दलहन व तेहलन का उत्पादन होता है। दहलन की खेती को बढ़ावा देने के लिए टाल क्षेत्र के खेतों में पानी पहुंचाने व निचले स्तर के खेतों से पानी का निकास का प्रोजेक्ट साकार नहीं हो पाया। नालंदा में मछली उत्पादन व पशुपालन बड़े पैमाने पर होता है। इसे भी व्यावसायिक रूप देने का प्रयास अधूरा है। पब्लिक ट्रांसपोटिंग की व्यवस्था नहीं के बराबर है। इसके कारण गांवों में उत्पादित साग-सब्जियां शहरों तक पहुंचाना किसानों के लिए काफी महंगा है। जिले के विकास के लिए कुछ सुझाव दिए जा सकते हैं। कृषि आधारित जिले होने के कारण कृषि को बढ़ावा देने के लिए कृषि व्यावसायिक यूनिटों की स्थापना की जानी चाहिए। आलू से चिप्स बनाने के लिए एक प्रोजेक्ट तैयार किया जाना चाहिए। दलहन व तेहलन की खेती को बढ़ावा देने के लिए टाल क्षेत्र के खेतों में पानी पहुंचाने व निचले स्तर के खेतों से पानी का निकास का प्रोजेक्ट को जल्द से जल्द पूरा किया जाना चाहिए। मछली उत्पादन व पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा योजनाएं बनाई जानी चाहिए। पब्लिक ट्रांसपोटिंग की व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए सरकार को प्रयास करना चाहिए।
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December 6, 2024