नालंदा। जिऊतिया व्रत (जीवित पुत्रिका व्रत) इस बार विशेष संयोग के साथ मनाया जाएगा। 5 अक्टूबर को नहाय-खाय से तीन दिवसीय व्रत की शुरुआत होगी। 6 अक्टूबर को माताएं निर्जला उपवास कर शाम में पूजा करेंगी और पुत्रों की दीर्घायु की कामना करेंगी। 7 अक्टूबर की सुबह में व्रत का पारण होगा। पं. मोहन कुमार दत्त मिश्रा बताते हैं कि जिऊतिया व्रत आश्विन कृष्ण पक्ष मध्यान एवं प्रदोष व्यापिनी अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। सप्तमी को नहाय-खाय के साथ व्रत की शुरुआत की जाती है। सभी पंचागों में छह अक्टूबर को जिऊतिया व्रत का वर्णन किया गया है। परंतु, कुछ विद्वानों द्वारा संशय किया गया है कि सप्तमी युक्त अष्टमी व्रत करना निषेध है। लेकिन, निर्णय सिंधु के अनुसार अष्टमी तिथि को दो भागों में बांटा गया है। कृष्ण पक्ष की अष्टमी और शुक्ल पक्ष की अष्टमी। यह व्रत कृष्ण पक्ष की अष्टमी को प्रदोष व्यापिनी में मनाया जाता है, जिसके स्वामी भगवान शिव होते हैं। जबकि, शुक्ल पक्ष अष्टमी के स्वामी मां दुर्गा होती हैं। निर्णयामृत के अनुसार अगर सप्तमी उपरांत अष्टमी तिथि हो तो भी प्रदोष काल में व्रत करना चाहिए। इस बार जिऊतिया व्रत पर पद्म योग और सर्वार्थ सिद्धि योग का विशेष संयोग बन रहा है। पद्म योग में भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और सर्वार्थ सिद्धि योग में सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।जिऊतिया व्रत एक महत्वपूर्ण हिंदू व्रत है, जो माताएं अपने पुत्रों की लंबी आयु और सुखमय जीवन के लिए रखती हैं। इस व्रत में माताएं तीन दिनों तक निर्जला उपवास रखती हैं और भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करती हैं। व्रत के अंत में माताएं अपने पुत्रों के लिए भोजन पकाकर उन्हें खिलाती हैं। इस व्रत की कथा के अनुसार, एक बार एक रानी थी, जिसकी एक ही संतान थी। एक दिन, रानी का पुत्र खेलते-खेलते तालाब में गिर गया और डूब गया। रानी बहुत दुखी हुई और उसने भगवान शिव और मां पार्वती से अपने पुत्र को जीवित करने की प्रार्थना की। भगवान शिव और मां पार्वती ने रानी की प्रार्थना सुनी और रानी के पुत्र को जीवित कर दिया। रानी ने भगवान शिव और मां पार्वती की कृपा से अपने पुत्र की लंबी आयु और सुखमय जीवन के लिए जिऊतिया व्रत रखा।नहाय-खाय : व्रत से एक दिन पहले, माताएं स्नान करती हैं और नए कपड़े पहनती हैं। इसके बाद, वे घर में साफ-सफाई करती हैं और पूजा की तैयारी करती हैं। निर्जला उपवास : 5 अक्टूबर को, माताएं निर्जला उपवास रखती हैं। वे केवल पानी पी सकती हैं।पूजा : 6 अक्टूबर को, माताएं भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करती हैं। वे उनके सामने अखंड दीपक जलती हैं और उन्हें मिठाई, फल और फूल अर्पित करती हैं। पारण : 7 अक्टूबर को, माताएं सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करती हैं। वे मीठे चावल और फल खाती हैं।